पटना। राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा का एक अघोषित उद्देश्य सीटों का दबाव भी रहा। पिछली बार राजद ने कांग्रेस को लगभग तीन दर्जन वैसी सीटें भी थमा दी थीं, जहां पिछले तीन-चार चुनावों से उसकी भी दाल नहीं गल रही थी। हार स्वाभाविक थी। स्ट्राइक रेट बिगड़ा तो कांग्रेस को जब-तब लताड़ भी लगी। वामदलों, विशेषकर भाकपा-माले, को अपना अनुचर बनाकर राजद आखिरी निर्णय के लिए तैयार बैठा था, लेकिन राहुल की इस यात्रा ने उसकी सोची-समझी रणनीति में अड़ंगा लगा दिया है।

अपनी मांग से कम सीटों पर कांग्रेस राजी होती है, तो भी पसंदीदा सीटों से कोई समझौता नहीं करेगी। सीट बंटवारे की गुत्थी सुलझाने के लिए महागठबंधन की समन्वय समिति 15 सितंबर को फिर माथापच्ची करेगी।

विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग से लेकर साझा चुनावी रणनीति तक के लिए समन्वय समिति भी कांग्रेस के दबाव में ही बनी थी। तेजस्वी यादव को उसकी कमान मिलने से राजद आश्वस्त हुआ, तो कांग्रेस भी सतर्क रही। समिति की अब तक पांच दौर की बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन बात दावेदारी वाली सीटों की सूची साझा करने से आगे नहीं बढ़ी।

कांग्रेस की अपेक्षा थी कि अंदरखाने ही सही, सीटें चिह्नित हो जाएं, ताकि चुनावी तैयारी हो सके। इसमें राजद की आनकानी का एक बड़ा कारण नए सहयोगियों की आवक की संभावना थी। बहरहाल एआईएमआईएम से बात बेपटरी हो चुकी है। झामुमो बहुत अड़ंगे की स्थिति में नहीं और पशुपति कुमार पारस की रालोजपा के पास राजद की शर्तों के अतिरिक्त कोई चारा नहीं। प्रतीक्षा की राजनीति से राजद ने यह बढ़त ली। उसके बाद विधानसभा क्षेत्रवार सर्वे का हवाला देकर वह कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) आदि को नतमस्तक करने वाली थी। कांग्रेस ने इसे पहले भी भांप लिया था, इसीलिए मुख्यमंत्री के चेहरे पर बात अटका दी।

उसके अपने अंदरूनी सर्वे में ऐसी ढाई दर्जन सीटें चिह्नित हुई हैं, जिन पर कांग्रेस अपने को बेहतर स्थिति में पा रही। उनमें से अधिसंख्य सीटें अभी राजद और वाम दलों के खाते में हैं। कुछ सीटों पर राजद मामूली मतों के अंतर से निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहा है। कांग्रेस द्वारा सौंपी गई 105 सीटों की सूची में वे सीटें दूसरी वरीयता की श्रेणी में हैं। पहली वरीयता में सिटिंग संग पिछली बार रनर वाली सीटें हैं। इस मोल-तोल के बीच ही मतदाता-सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू हुआ। लोकसभा चुनाव से ही कशमकश से उबरने की सोच रही कांग्रेस को बढ़िया बहाना मिल गया। बिहार की परिक्रमा कर राहुल ने यह अनुभूति करा दी कि कांग्रेस में अब भी कुछ दम है।

इस यात्रा का हर महत्वपूर्ण निर्णय कांग्रेस ने लिया और शेष घटक दलों ने उसका अनुसरण किया। इसी तरह कांग्रेस सीट शेयरिंग में भी निर्णायक भूमिका चाह रही। बहरहाल, कांग्रेस की देखादेखी वीआईपी आदि दूसरे घटक दलों ने भी सीटों की लंबी सूची पेश कर दी है। राजद उधेड़बुन में है। अभी तो एनडीए में सीट शेयरिंग की प्रतीक्षा में बात आगे टाली जा रही, लेकिन चुनावी अधिसूचना के बाद हीलाहवाली नहीं चलेगी। सितंबर मध्य में अधिसूचना जारी हो सकती है।

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