
नई दिल्ली । करीब सात साल के अंतराल के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन गए और तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में सुर्खियां बटोरीं। इस यात्रा का प्रभाव भारत और चीन से आगे बढ़कर पूरे क्षेत्र और व्यापक विश्व पर पड़ा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ युद्ध की छाया में मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक का सांकेतिक और रणनीतिक दोनों ही महत्व था। भले ही कुछ हलकों में इस यात्रा की सराहना कूटनीतिक सफलता और यहां तक कि ट्रंप के लिए एक फटकार के रूप में की गई, मगर, दुनियाभर के एक्सपर्ट इसमें सतर्कता बरतने की भी सलाह दे रहे हैं।



वीबो हैशटैग-‘ट्रंप के चार बार कॉल ठुकराने के बाद, मोदी ने चीन और जापान का रुख किया’ को 2.2 करोड़ से ज्यादा बार देखा गया। इसके अंतर्गत एक पोस्ट में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की आलोचना की गई कि उन्होंने चीनी आर्थिक अवसरों की कीमत पर वाशिंगटन के साथ बहुत अधिक निकटता बना ली है, जबकि चीन और जापान को भारत की बाजार आवश्यकताओं के लिए बेहतर व्यावहारिक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। जर्मन मीडिया के हवाले से कहा गया था कि मोदी ने 4 बार ट्रंप का फोन नहीं उठाया था। हालांकि, इन खबरों को ह्वाइट हाउस ने खारिज कर दिया था।
इन 4 वजहों से भारत आया चीन के करीब : फुडान विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र के सहयोगी शोधकर्ता जी चाओ ने एक विरोधाभास के प्रति भारत की बढ़ती जागरूकता की ओर इशारा किया। उन्होंने भारत के बदलते रवैये के पीछे चार कारणों की पहचान की। उन्होंने कहा-आर्थिक जरूरतें, अमेरिकी टैरिफ नीतियों से असंतोष, भारत और पाकिस्तान को एक साथ जोड़ने की वाशिंगटन की प्रवृत्ति और अमेरिका की दीर्घकालिक विश्वसनीयता पर नई दिल्ली का संदेह, ये चार बातें ही भारत को चीन के करीब लाईं। दरअसल, अमेरिका अक्सर हर मामले में पाकिस्तान को अपना दोस्त बताता है और खुलकर भारत के समर्थन में नहीं आता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी यही बात देखने को मिली। भारत को तभी से ये बात खटक गई।
चीन के एक्सपर्ट बोले-फिट है हाथी-ड्रैगन की जोड़ी : चीन के रेनमिन विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध स्कूल के उप-डीन जिन कैनरोंग ने वीबो पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में तर्क दिया कि ट्रंप द्वारा भारत के अपमान ने विडंबनापूर्ण रूप से चीन-भारत संबंधों के घनिष्ठ होने का मार्ग प्रशस्त किया है। बीजिंग स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर चाइना एंड ग्लोबलाइजेशन के उपाध्यक्ष विक्टर गाओ ने वीबो पर कहा-चीन-भारत संबंधों में सुधार दोनों देशों के मूलभूत हित में है, लेकिन यह कहना होगा कि इस बार ट्रंप ने सराहनीय योगदान दिया है।