सुशोभित
लियोनल मेस्सी ने अर्जेन्तीना के लिए लगातार चार फ़ाइनल हारे, और फिर लगातार चार फ़ाइनल जीते! पहले कहा जाता था कि मेस्सी एक इंटरनेशनल ट्रॉफ़ी कब जीतेंगे, और अब कहा जा रहा है कि आखिर वे कितनी जीतेंगे? यह खेलों के इतिहास की सबसे नाटकीय कथाओं में से एक है।
आज सुबह मेस्सी की अर्जेन्तीना ने लगातार दूसरा कोपा-अमरीका टूर्नामेंट जीत लिया। इन दोनों टूर्नामेंटों के बीच में उन्होंने विश्व कप भी जीता है। लेकिन इस बार विशेष बात यह है कि अर्जेन्तीना ने यह मेस्सी के सक्रिय-योगदान के बिना किया। उन्होंने टूर्नामेंट में एक गोल और एक असिस्ट दिया और फ़ाइनल मैच में चोटिल होकर रोते हुए बाहर जा बैठे, लेकिन इस बार उनकी टीम ने उन्हें अपने कंधों पर उठाया और विजेता के गौरव की ओर ले गए।
यह उनकी टीम का उनके लिए उपहार था, क्योंकि मेस्सी एक अरसे से अर्जेन्तीना को अपने कंधों पर उठाए हुए थे- कोपा-अमरीका 2021 और विश्व कप-2022 तो उन्होंने लगभग अपने एकल-पराक्रम से जीता था और विजेता के मेडल के साथ ही टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का सम्मान भी पाया था। लेकिन इस बार लॉतारो मार्तीनेज़, हूलीयन अल्वारेज़, एन्ज़ो फर्नान्दीज़, कूती रोमेरो, लिस्सान्द्रो मार्तीनेज़, रोद्रीगो डी पॉल, एमिलियानो मार्तीनेज़ जैसे योद्धाओं ने ट्रॉफ़ी जीतने के लिए जान की बाज़ी लगा दी थी। लातीन-अमरीका में बहुत फिजिकल-फ़ुटबॉल खेला जाता है, बहुत धक्का-मुक्की होती है, कोहनियाँ मारी जाती हैं, टाँगें तोड़ी जाती हैं। वहाँ पर यूरोपियनों सरीखी नफ़ीस-फ़ुटबॉल नहीं खेली जाती। यूरोपियन क्लबों में खेलने वाले इन अर्जेन्तीनी योद्धाओं ने इस बार ट्रॉफ़ी जीतने के लिए बहुत कड़ा संघर्ष किया।
एक लम्बे समय तक मेस्सी के पास सबकुछ था, सिवाय एक अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण-पदक के। वे शिखर पर थे, किंतु उनके सिर पर कोई मुकुट नहीं था। यह आकाश-वृत्ति उनको छलती थी। उन्होंने बार्सीलोना की लाल-नीली जर्सी के लिए ट्रॉफियों का अम्बार लगा दिया था, लेकिन अर्जेन्तीना की सफ़ेद-फ़ीरोज़ी जर्सी पहने उनके हाथ ख़ाली ही रहे थे। इस स्वर्ण-पदक की मरीचिका मेस्सी को दूर खींचे लिए जाती थी, विकलता से भरती थी, किंतु लक्ष्य अर्जित नहीं होता था। चंद्रमा पर दाग़ था, स्वर्ण में सुगन्ध नहीं थी, मणि में कोमलता नहीं- और मेस्सी भी अंतरराष्ट्रीय ट्रॉफ़ी के बिना अधूरे थे।
2021 से पहले अर्जेन्तीना ने आख़िरी बार वर्ष 1993 में एक अंतरराष्ट्रीय ट्रॉफ़ी जीती थी। वो दिएगो मारादोना के पराभव का दौर था। विश्व-विजय का गौरव पहले ही अर्जेन्तीना के हिस्से में आ चुका था। किंतु जिस खिलाड़ी को मारादोना के बाद अर्जेन्तीना का सबसे बड़ा फ़ुटबॉलर एक-स्वर से स्वीकारा गया, वो अपना लगभग पूरा कॅरियर बिता देने के बावजूद इस अभाव की पूर्ति नहीं कर सका था। लेकिन अब यह तस्वीर बदल गई है। और ना केवल तस्वीर बदली है, वास्तव में मेस्सी ने अंतरराष्ट्रीय पदकों की झड़ी लगा दी है।
2016 से 2020 तक का समय मेस्सी के लिए बहुत कठिन था। बार्सीलोना के लिए खेलते हुए उन्होंने दो चैम्पियंस लीग सेमीफ़ाइनल और तीन क्वार्टर फ़ाइनल हारे। वहीं अर्जेन्तीना के लिए 2014 में विश्व कप फ़ाइनल हारने के बाद 2015 और 2016 में लगातार दो कोपा-अमरीका फ़ाइनल हारे। इतनी बार खिताब के इतने क़रीब आकर बार-बार हार जाने ने उनके भीतर निराशा रोप दी थी, एक बार तो उन्होंने हताशा में अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल को अलविदा भी कह दिया। लेकिन अब उन्होंने इसकी भरपूर भरपाई कर दी है। सबक़ यह है कि जब हमें लगता है, सब कुछ समाप्त हो चुका है, तब शायद एक नई शुरुआत हो रही होती है और अगर डटे रहें तो विजेता का गौरव हमारा भी आलिंगन कर सकता है।
जिस सुबह मेस्सी ने यह कोपा-अमरीका जीता, उससे एक रात पहले स्पेन की टीम ने बेहतरीन फ़ुटबॉल खेलते हुए यूरो कप भी जीता। इस टीम के सबसे प्रतिभाशाली युवा खिलाड़ी 16 साल के लमीन यमाल थे, जो जब मात्र कुछ ही महीनों के थे, तब युवा मेस्सी ने उनका पवित्र-अभिषेक किया था। अब दोनों कॉन्टिनेंटल विजेताओं के रूप में फिनालिस्सिमा का एक मैच खेलने के लिए आमने-सामने होंगे। यमाल अगर भारतीय होते तो निश्चय ही मैच से पहले मेस्सी के चरण छूते और मेस्सी भी उन्हें आशीष देते। दो पीढ़ियों के मिलन का वह दृश्य अद्भुत होगा। एक पीढ़ी बाहर जा रही है, दूसरी भीतर प्रवेश कर रही है। मेस्सी अपने खेल-कॅरियर की संध्यावेला में पहुँच चुके हैं और अब वे अधिक समय मैदान पर नज़र नहीं आएँगे।
सचिन तेंदुलकर ने 20 साल से ज़्यादा समय तक खेलने के बाद विश्व कप जीता था, मेस्सी ने भी इंटरनेशनल-ग्लोरी के लिए दो दशक इंतज़ार किया। जब वे खेल को अलविदा कहेंगे तो उससे पूर्व ही फ़ुटबॉल के निर्विवाद ईश्वर के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके होंगे। सम्राट को अब अपना मुकुट मिल गया है!