
रांची। सुप्रीम कोर्ट से राज्य के डीजीपी अनुराग गुप्ता को राहत मिली है। चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ में सोमवार को नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी की ओर से दाखिल अवमानना याचिका को खारिज कर दिया। सुनवाई के दौरान अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि राजनीतिक हिसाब बराबर करने के लिए अवमानना और जनहित याचिका का इस्तेमाल नहीं किया जाए।



अदालत ने कहा कि इस मामले में व्यक्तिगत रूप से दाखिल याचिका पर सुनवाई नहीं होगी। यह मामला दो अधिकारियों के बीच की प्रतिद्वंद्विता का प्रतीत होता है। अदालत ने इसमें हस्तक्षेप करने से इन्कार करते हुए बाबूलाल मरांडी की याचिका खारिज कर दी। हालांकि, अदालत ने कहा कि राज्यों में डीजीपी की नियुक्ति से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई जारी रहेगी। बाबूलाल मरांडी की ओर से प्रकाश सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन का आरोप लगाते हुए अनुराग गुप्ता को डीजीपी बनाने जाने का मुद्दा उठाया था।
कहा गया कि अनुराग गुप्ता 30 अप्रैल 2025 को सेवानिवृत्त हो गए, लेकिन इसके बाद भी उन्हें सेवा विस्तार देते हुए डीजीपी बनाया गया है। सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने सख्त लहजे में कहा कि अवमानना की कार्यवाही का इस्तेमाल राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए नहीं किया जा सकता। जनहित याचिकाएं समाज के कमजोर वर्गों की भलाई के लिए होती हैं, व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों के लिए नहीं।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि अवमानना याचिका अनुराग गुप्ता और पूर्व डीजीपी अजय कुमार के बीच विवाद के कारण दाखिल की गई है। अनुराग गुप्ता की नियुक्ति के लिए अजय कुमार को पद से हटा दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि जब वह राज्यों में डीजीपी की नियुक्ति से संबंधित मामले की सुनवाई हो रही है, तो वह व्यक्तिगत मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता है।
न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने प्रकाश सिंह के इस सुझाव का समर्थन किया कि डीजीपी की नियुक्ति यूपीएससी की बजाय मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जानी चाहिए। प्रकाश सिंह ने कोर्ट को बताया कि राज्य डीजीपी नियुक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों को दरकिनार करने के लिए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशकों (एडीजीपी) की नियुक्ति कर रहे हैं।