संगीत प्रेमी दोस्तो,आपको वो गाने याद हैं,जो बचपन में आपकी कंघी करते वक्त आपकी मम्मी गुनगुनाती थीं रेडियो के साथ? याद आये? वेरी गुड!
अब इनमें से वो गाने छांट लीजिए जो आपको तब भी अच्छे लगते थे,और अब भी लगते हैं। छांटे? अब उन पर एक नज़र डालिये? कुछ फ़र्क़ महसूस हुआ? हुआ न? जानते हैं ऐसा क्यों हुआ?
वो इसलिए कि वही गाने ‘पसंद’ आने के साथ साथ अब आपको ‘समझ’ भी आने लगे हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी ‘पसंद’ किए जाने वाले ऐसे गानों के लिए डिक्शनरी में एक शब्द है- ‘क्लासिक!’ और ये गाने ‘क्लासिक का दर्जा’ रखते हैं। और एक खास बात,इनके लिखे कई गानों के ‘बोल’ हम मौके-दर-मौके ‘पंच-लाइन’ की तरह इस्तेमाल करते हैं।
पर इस शख्स के ‘काम’ और ‘नाम’ को बहुत लोग कम जानते हैं। इस हस्ती का नाम है: एस.एच.बिहारी। पूरा नाम: शम्स-उल हुदा बिहारी।
एस.एच.बिहारी के लिखे गानों की सबसे अच्छी बात ये है कि उन्होंने ‘रूपक’ को कभी हावी नहीं होने दिया। उन्होंने लिखा,‘चांद सा रौशन चेहरा,झील सी नीली आंखें..’मगर लास्ट में हमें याद रह जाता है, ‘..तारीफ़ करूं क्या उसकी,जिसने तुम्हें बनाया..’।
सीधी सादी बात। न उसे समझने में दिक्कत जिस के लिए कहा है,न उसके लिए समझना मुश्किल जो सुन रहा है। कोई ऐसा शब्द नहीं जो आम बोल चाल से अलग हो। यही वजह है कि उनके गाने ‘आम आदमी’ के गाने बन जाते हैं।
अगर गीतकार शैलेंद्र साधारण शब्दों में ‘दर्शन’ को उतार देने के उस्ताद हैं। साहिर रूमानियत में एक ‘ग्लैमर’ और ‘भव्यता’ लेकर आते हैं। इसी तरह एस एच बिहारी के गीतों में ‘सादगी’ सबसे बड़ा फैक्टर है।
इनके गीतों में रूपक और उपमाएं भरपूर होती हैं मगर वो गीत की सुंदरता पर हावी नहीं हो पाती।
एस.एच.बिहारी को काम मिलने की भी एक रोचक दास्तान है।
बिहारी अपने स्ट्रगल से परेशान हो गए थे। एक आखिरी कोशिश करने फ़िल्मस्थान के शशधर मुखर्जी के पास गए। शशधर नहीं मिले। बाजू पर एक ताबीज बंधा था।
उसमें चांदी का एक सिक्का था। सिक्का निकाल कर ‘चाय-भजिया’ खा लिया..!! फिर एक बार स्टूडियो गए। देखा सामने ही शशधर मुखर्जी खड़े थे। शशधर मुखर्जी ने पूछा : “क्या बेचते हो..?” बिहारी ने जवाब दिया:- ‘..दिल के टुकड़े!!..’मुखर्जी साहब को ये जवाब बड़ा पसंद आया।
मुखर्जी साहब पहले भी कई कलाकारों को उनका पहला महत्वपूर्ण ब्रेक दे चुके हैं,जिनमें शामिल हैं एस.डी. बर्मन, हेमन्त कुमार, निर्देशक हेमेन गुप्ता और सत्येन बोस.1954 में इस लिस्ट में दो और नाम जुड़ गये,एक तो थे निर्देशक बिभूति मित्र और दूसरे गीतकार एस.एच.बिहारी।
भले ही बिहारी 1950 से गीत लिखते चले आ रहे थे,पर यहां उनका पुनर्जन्म हुआ और उनकी कलम ने जन्म दिया इस बेमिसाल अमर नगमे को: “न ये चांद होगा,न तारे रहेंगे,मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे” (फ़िल्म : शर्त-1954) इस गाने में जादू जितना जादू हेमंत कुमार या गीतादत्त की आवाज़ का था,उतना ही बिहारी के बोलों का भी है। इस गाने में कितनी सादगी के साथ अपने चाहने वाले को उम्र भर और उसके बाद तक के साथ का वादा किया गया है।
इस हमेशा जवां गीत के बाद तो जैसे बेमिसाल यादगार नग्मों की झड़ी ही लग गई:
ज़रा प्यार कर ले,इकरार कर ले”
(फ़िल्म:मंगु-1954)
“दिल छेड़ कोई ऐसा नगमा,गीतों में ज़माना खो जाये”
(फ़िल्म:इन्स्पेक्टर-1956)
“बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी”
(फ़िल्म:एक मुसाफिर एक हसीना-1962)
“तारीफ करूं क्या उसकी, जिसने तुम्हें बनाया”
(फ़िल्म:कश्मीर की कली 1964)
“ज़रा हौले हौले चलो मोरे साजना”
(फ़िल्म:सावन की घटा- 1966)
“कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला”
(फ़िल्म:किस्मत 1968)
और ‘इशारों इशारों में दिल लेने वाले” (फ़िल्म:कश्मीर की कली- 1966) रफी+आशा भोसले,ओ.पी नैयर और एस.एच.बिहारी के कॉम्बिनेशन से बना ये गीत रूमानियत भरे गानों की लिस्ट में बरसों से ऊंची जगह कब्ज़ाए बैठा है. ये गाना बजता नहीं बहता है।
गीतकारों को अपने हक़ के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा है। गाना सुनकर लोग पहली दाद हमेशा गाने वाले को देते हैं। उसके बाद बची-खुची तारीफ संगीतकार समेट लेते हैं।
गीतकार का नाम हमेशा आखिर में आता है। रेडियो पर गीतकारों को क्रेडिट मिलना भी तब शुरू हुआ जब साहिर लुधियानवी इसके लिए लड़ पड़े। ऐसे में हैरानी नहीं, कि हम में से ज़्यादातर लोग नहीं जानते कि एस.एच.बिहारी इतना कुछ लिख गए हैं। गीतकार के रूप में उनकी आख़री फ़िल्म थी: संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ ‘प्यार झुकता नहीं (1985)।
हिंदी सिनेमा में अमूल्य योगदान के बावज़ूद उस दौर के कई दूसरे गीतकारों के जैसी ख्याति उन्हें नहीं मिली। गीत लिखने के अलावा बिहारी ने बहुचर्चित फिल्म ‘दो बदन’ का निर्माण भी किया था जिसके सारे गीत शकील बदायुनी ने लिखे थे ‘प्यार झुकता नहीं’ की कथा-पटकथा भी उन्होंने ही लिखी थी।
संगीतकार ओपी नैयर उन्हें शायर-ए आज़म के नाम से पुकारते थे और मशहूर गीतकार उन्हें अद्भुत शायरी का जन्मदाता मानते मानते हैं जिन्हें बहुत जल्द भुला दिया गया।
अब आप भी उन्हें जान गए हैं.नाम याद रखिएगा। ‘शम्स-उल हुदा बिहारी’ या ‘हुदा बिहारी’।